
त्रिपाठी ने कहा कि आज वे जिस मुकाम पर खड़े हैं, उसका श्रेय शुरुआती संघर्षों को जाता है. त्रिपाठी ने पीटीआई-भाषा को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि, ‘वे मेरे शुरुआती दिन थे. मैं आज जो कुछ भी हूं, उन पुरानी गलतियों और उस समय जो मैंने अच्छी चीजें की थी, उसकी देन है. मेरे जेहन में बाबा नागार्जुन की कविता- ‘जो न हो सके पूर्ण काम, उनका करता हूं मैं प्रणाम’ की कविता चलती थी.’
सारी विफलताएं ठीक थींएक्टर बिहार के गोपालगंज जिले के बेलसांड से ताल्लुक रखते हैं. उनका कहना है कि अगर उनका बचपन कठिनाइयों में नहीं गुजरा होता तो वह मौजूदा व्यक्तित्व को नहीं पा सकते थे. उन्होंने कहा, ‘हमारा जो अतीत होता है, वह हमेशा ठीक ही होता है. मेरा मानना है कि जो कुछ भी होता है, अच्छे के लिए होता है. इसलिए वह सारी विफलताएं ठीक ही थीं.’
आशावाद का यह दर्शन त्रिपाठी के हर काम में झलकता है, चाहे वह ‘मिर्जापुर’ वेबसीरीज (Web Series Mirzapur) में कालीन भैया नाम के खलनायक का किरदार ही क्यों न हो. अमेजन प्राइम पर प्रसारित मिर्जापुर में उन्होंने कालीन भैया नाम के खलनायक का किरदार अदा किया है.‘मैं अपने सभी किरदारों में कुछ मानवीय पुट और उम्मीद भरता हूं’पंकज ने कहा, ‘मैं ऐसा व्यक्ति हूं जो चीजों को ठहराव के साथ करना पसंद करता है और इसलिए मैं कालीन भैया के किरदार में ‘ठहराव’ लाया. वह नकारात्मक है. मैं अपने किरदार इस उम्मीद के साथ निभाता हूं कि कहीं वे अच्छे होंगे या बेहतरी के लिए खुद को बदल सकते हैं. इसलिए मैं अपने सभी किरदारों में कुछ मानवीय पुट और उम्मीद भरता हूं. आप उसे ऊपर से खराब नहीं पाएंगे, आपको उसकी बुराई को देखने के लिए अंदर झांकना होगा.’
‘शिक्षा नौकरी पाने का नहीं, व्यक्तित्व विकास का जरिया होना चाहिए’
एक्टर ने कहा कि ‘मिर्जापुर’ के दूसरे सीजन को लेकर लोगों में काफी उम्मीदें आ गईं. दूसरे सीजन का प्रसारण 23 अक्टूबर से हो रहा है. त्रिपाठी ने कहा कि उन्होंने जब इसकी पटकथा पढ़ी थी तो वह पसंद आई थी लेकिन यह शो और किरदार इतना लोकप्रिय हो जाएगा, इसके बारे में नहीं सोचा था. ‘मिर्जापुर’ में उत्तर भारत की तकलीफों को दिखाने के एक सवाल के जवाब में वह कहते हैं कि शिक्षा सिर्फ नौकरी पाने का जरिया होने से ज्यादा व्यक्तित्व विकास का जरिया होना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘मैं जिन लोगों के साथ बड़ा हुआ और जब मैं उनसे बातें करता हूं, चाहे वे बड़े शहरों में ही क्यों न रह रहें हों तो पाता हूं कि वह व्यक्ति खुद के विकास की राह में कहीं रूक सा गया है और इनमें से 90 फीसदी लोगों को महसूस भी नहीं होता कि इसमें कुछ दिक्कत है. हमने शिक्षा को सिर्फ नौकरी पाने का माध्यम बना दिया है.’