न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Sat, 26 Sep 2020 08:12 PM IST
अटल बिहारी वाजपेयी (फाइल फोटो)
– फोटो : पीटीआई
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वाजपेयी ने विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में अपनी भूमिका में, साल 1977 से साल 2003 तक सात बार संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) को संबोधित किया था।अपनी वाकपटुता के लिये मशहूर वाजपेयी ने साल 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में बतौर विदेश मंत्री पहली बार यूएनजीए के 32वें सत्र को संबोधित किया था।
‘संयुक्त राष्ट्र में मैं नया हूं, लेकिन भारत नहीं’
अपने संबोधन में उन्होंने कहा था कि ‘संयुक्त राष्ट्र में मैं नया हूं, लेकिन भारत नहीं। हालांकि इस संगठन के साथ मैं इसके आरंभ से ही बेहद सक्रिय रूप में जुड़ा हूं।’ वाजपेयी ने इस ऐतिहासिक संबोधन में कहा था कि ‘एक ऐसा शख्स जो अपने देश में दो दशक और उससे अधिक समय तक सांसद रहा, लेकिन पहली बार राष्ट्रों की इस सभा में हिस्सा लेकर अपने अंदर विशेष अनुभूति महसूस कर रहा हूं।’
यह पहली बार था जब किसी भारतीय नेता ने यूएनजीए में अपना भाषण हिंदी में दिया था। क्योंकि वैश्विक मंच पर प्रमुख भाषा होने के कारण अन्य भारतीय नेता अंग्रेजी भाषा का चयन करते थे। हालांकि वाजपेयी धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते थे, लेकिन संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण के लिए उस वक्त हिंदी के चयन के पीछे उनका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय पटल पर हिंदी को उभारना था। वाजपेयी ने गुटनिरपक्ष आंदोलन के विषय को उठाया और कहा कि भारत शांति, गुटनिरपेक्षता और सभी देशों के साथ मित्रता के लिए बहुत दृढ़ता के साथ खड़ा है।
‘वसुधैव कुटुंबकम् की परिकल्पना बहुत पुरानी है’
अपने संबोधन में वाजपेयी ने कहा था कि ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की परिकल्पना बहुत पुरानी है। भारत में सदा से इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है।भारत में हम सभी वसुधैव कुटुंबकम् की अवधारणा में विश्वास रखते हैं।’
‘लोकतंत्र की जड़ें एक विकासशील देश में स्थापित हो सकती हैं’
साल 1998 में वाजपेयी ने बतौर प्रधानमंत्री यूएनजीए को संबोधित किया और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से न्यूयार्क में मुलाकात की थी। उन्होंने कहा था कि ‘भारत ने यह दिखाया है कि लोकतंत्र की जड़ें एक विकासशील देश में स्थापित हो सकती हैं।’
साल 2000 में वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र के सहस्त्राब्दी शिखर सम्मेलन को संबोधित करने के लिए यूएनजीए गए। वहां उन्होंने आतंकवाद, परमाणु युद्ध के खतरे और भारत के परमाणु कार्यक्रम के बारे में बात की। साल 2001 में उन्होंने एक बार फिर यूएनजीए के 56वें सत्र को संबोधित किया और कुछ देशों द्वारा आतंकवाद को प्रायोजित करने की नीति के बारे में बात की। यह सत्र 9/11 हमले के बाद हुआ था।
साल 2002 में यूएनजीए के 57वें सत्र में अपने संबोधन में वाजपेयी ने एक बार फिर सरकार प्रायोजित आतंकवाद और दक्षिण एशिया में परमाणु धमकी का मुद्दा उठाया।साल 2003 में वाजपेयी ने यूएनजीए में अपना अंतिम भाषण दिया था। यूएनजीए के 58वें सत्र के संबोधन में वाजपेयी ने इराक का उदाहरण देकर विश्वसंस्था की आलोचना करते हुए कहा था कि ‘संयुक्त राष्ट्र विवादों को रोकने या उनके समाधान में हमेशा से सफल नहीं रहा है।’